स्टेशन पे ट्रेन का इंतज़ार करना बहुत ही दुखदायी होता है… अगल बगल की चीजों पे नज़र अनायास चली जाती है… आजकल मै बेरोजगार हूँ , कुछ खरीदने के पहले सौ बार सोचती हूँ, भाई से माँगना अच्छा नहीं लगता ... पर्स में बस कुछ चिल्लर ही पड़े मिलते है…. पर दिल तो बच्चा है जी इसलिए मचलने लगता है की कैसे पैसे खर्च करु। .....................उफ़ इतनी गर्मी है, भैया आइसक्रीम खाओगे? मैंने अपने भाई की तरफ देखते हुए कह। भैया ने सौ का नोट देते हुए कहा- जाओ ले आओ .. मै दौड़ कर आइस क्रीम ले कर आई … चॉकलेट कैरामेल आइसक्रीम, उफ़ कितना टेस्टी है… !!........ तभी सामने एक अधेर उम्र की औरत पे नज़र पड़ गयी , अस्सी की तो होंगी ही, पास जा कर हाथ फैला रही थी ,नज़रे निचे थी, बदन पे साफ़ सुथरे कपडे थे, कोई पैसे दे रहा था , कोई नहीं दे रहा था . ऐसे कितने ही दीखते है,पर उस औरात की झुकी हुयी नज़र ने मुझे हिला दिया, पता नहीं कौन सी मज़बूरी है इनकी, सायद बेटे ने निकाल दिया हो या फिर कोई और बात हो… हाथ में बस चिल्लर थे उस के … इतने में मेरी आइसक्रीम पिघलती जा रही थी, आइसक्रीम खाने का सारा उत्साह कहीं गायब हो गया था .........… जल्दी से अपने पर्स से चिल्लर निकाले मैंने उसके लिए . शायद काफी नहीं थे पर मेरे पास इतने ही थे, वो जैसे ही सामने आयी उसके हाथो पे उढेल दिये मैंने अपने सारे चिल्लर … सायद उसके कोई काम आ जाये .
No comments:
Post a Comment